शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

हैप्पी बर्थडे बुड्ढे ! … सॉरी। …… बापू !



चलो आज फिर गांधी को याद करते हैं,
एक दिन का ड्राई डे रखते हैं,

सालभरकी हिंसा, चोरी-चकारी, झूंठ - फरेबा,
सब एक दिन के लिए बंद करते हैं, 
एक दिन का ड्राई डे रखते हैं,

किसानो के खेत कई  सालों से ड्राई हैं,
एकदिन  उनके बारे में सोचते हैं,
चलो एक दिन का ड्राई डे रखते हैं,

जिसकी आँखे, रो- रो कर ड्राई हो गई है,
उन गरीब, लाचार के बारे में सोचते हैं,
चलो एक दिन का ड्राई डे रखते हैं,

वो महिला, वो बच्चा, जो आज भी पीड़ित है,
उसके सपने के बारे में सोचते हैं,
चलो एक दिन का ड्राई डे रखते हैं, 

उनको जिन्हे हमने हिंसा की आग में जला दिया,
हर उस घर के बारे में सोचते हैं, 
चलो एक दिन का ड्राई डे रखते हैं,

गांधी के हम पर किये एहसानो को सोचते हैं,
जिसे हम रोज मारते हैं,  
चलो उसके जन्म दिन को ड्राई क्लीन करते हैं, 
ऐ बुड्ढे ( गांधी) कहीं तू  ये तो नहीं सोच रहा कि,
हम रोज तो तेरा क़त्ल करते हैं, रोज तेरा ही खून पीते  हैं,
फिर ये ड्राई डे क्यों। 

मामू ! … सॉरी।  …… बापू !  वो तो अपना धंधा है, यानि बिज़नेस हैं,
और धंधे के लिए तो हम अपने बाप को भी बेंच दें,
तू तो सिर्फ इस देश का बाप है,  


तुझे नहीं पता कि देश के हर चौराहे पर तेरा स्टेचू क्यों बनवाया है,  
ताकि उस पर माला टांग सकें,
और रोज तुझे तिलांजलि  …… सॉरी ! श्रद्धांजलि दे सकें,  

तेरी आस्तीन में घुसकर, अपनी रोटी सेंक सकें,
तू इतने काम का है,  इसलिए अभी तक चौराहे पर खड़ा है,
नहीं तो तेरे स्टेचू से मैं अपना लॉन पटवा चुका  होता, 

तेरी बाते कर- कर  के, , झूठी ही सही 
हमने नजाने कितने इलेक्शन जीते होंगे,
और कितने जीतें गे, 

देख तू मरने के बाद भी कितने काम का है 
तो इतना तो बनता है  न मामू !!   सॉरी। …  बापू  !!  एक दिन का ड्राई डे  तो बनता है।  

चल अपना हैप्पी बर्थडे पकड़ और जाने दे,
कल के धंधे का होमवर्क करना है।  


Copyrights of the picture: original photographer 

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