गुरुवार, 9 जनवरी 2014

अब सोच कहाँ है, तू मानुष !



ये रण है धर्मं- अधर्म बीच । 
अब सोच कहाँ है, तू मानुष ।। 

या उठा सुदर्शन, भर हुंकार। 
या बन ध्रतराष्ट्र, कुटिल, अँधा ।।

या तो बन अर्जुन, उठा गांडीव। 
या कर्ण की तरह, कटा दे शीश ।।

या तो बन दुर्योधन, पापी। 
या बनजा, भीम, महाबलवान ।।

बन जा तू फिर से , विवश भीष्म। 
हैं, धर्मनिष्ठ, फिरभी लाचार ।।

या कर विद्रोह, विदुर जैसा। 
सत्य परायण, जन कल्याण ।।

या तो बन कपटी, कुटिल, शकुनि। 
गुरु द्रोण सा विवश गुरु ।।

या बन दुःशाशन, हर अबला ।
या कर अभिमन्यु, सा बलिदान ।।

है निर्णय का अब समय खड़ा।   
तू अपना चेहरा, तो पहचान ।। 

तू बना अमानुष, या मानुष।  
इतिहास करेगा, इसे बखान ।।

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