सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

"आप" की नजरों ने समझा, साथ के काबिल मुझे !



"आप" की नज़रों ने समझा, साथ के काबिल मुझे।  
कदमो की आहट बदल जा, दिख रही मंजिल मुझे।

हाँ हमे मंजूर है, बदलाव का ये सिलसिला,
कह रही है हर नजर, ऐ अरविन्द शुक्रिया।
हंस के देश की क्रांति में, कर लिया शामिल मुझे।
"आप" की नजरों ने समझा … 

देश की जनता की अब, असली मंजिल स्वराज है।  
मैं क्यों भ्रष्टों से डरूं, मेरे संग जो "आप" हैं।। 
कोई इन दुष्टों से कह दे, मिलेगा अब हक़ मुझे। 
"आप" की नजरों ने समझा …

पड़ गई मुझ पर अभी, क्रांति की परछाईयाँ।  
हर तरफ अब गूंजेगी, स्वराज की शहनाइयाँ।। 
कोई पैसे वालों से कह दे, मिल गया मकसद मुझे। 
"आप" की नजरों ने समझा …

"आप" ही सेवक मेरे, मेरे शासक "आप" हैं।  
आपने समझा दिया, असली राजा  कौन है।।
एक -एक नागरिक में अब, दिख रहा शासक मुझे।  
"आप" की नजरों ने समझा …

मेरे रग - रग  में बहे, देश प्रेम की गंगा।  
आओ हम मिल कर करे, देश पर कुर्बानिया।। 
भारत माँ की चरणों में, दिख रही जन्नत मुझे।  
"आप" की नजरों ने समझा …

वन्देमातरम ! 

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