बुधवार, 11 सितंबर 2013

चलो आज फिर देश जलाएं !


भारत के कई क्षेत्रों में समय - समय पर  होने वाली सम्प्रदैयिक हिंसा और मुज्जफ्फर नगर की तात्कालिक घटना पर  देश के राजनेताओं को समर्पित  एक व्यंग। 




चलो आज फिर देश जलाएं। 
सत्ता के खातिर जनता का खून बहायें।। 
धधक उठे ये राष्ट्र पुनः।
चलो कोई ऐसा जाल बिछाएं।। 

चलो लगायें आग पुनः।
राजनीति पकाएं।।
शव से बने कबाब।  
लहू से आटा गूंथे।।

आंसू की हो मदिरा। 
रुदन संगीत सजाएँ।।
बाला बने प्रशासन।   
उससे हाला बंटवाएँ।. 

न्याय बने पाजेब ।
कानून को नाच नचायें।।
संविधान भी लगे बिलखने। 
कोई ऐसा राग बजाएं।। 

भड़काकर लोगों को।  
उनके घर में आग लगायें।।
हर प्रान्त बने कश्मीर।
मुजफ्फ़र नगर बनाये।। 

सत्ता के गलियारों में।  
कुछ ऐसा जाल बिछाये।। 
कुर्सी का यह खेल। 
चलो फिर देश जलाएँ।।  

चलो आज फिर देश जलाएं। 
सत्ता के खातिर जनता का खून बहायें।। 
धधक उठे ये राष्ट्र पुनः।
चलो कोई ऐसा जाल बिछाएं।। 

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