शनिवार, 3 नवंबर 2012

सिंघवी रिटर्न्स !!




आज कल सीक्वल फिल्मो का जमाना है, जैसे सुपरमैन रिटर्न्स, द मामी रिटर्न्स, आदि। पहले ये फैशन सिर्फ पश्चिमी  देशों में था परन्तु समय के साथ ये भारत में भी काफी पापुलर है, जैसे  भूत रिटर्न्स, 1920 ईविल रिटर्न्स आदि । इसी तरह नेताओं का भी सीक्वल एपिसोड बनता है, जैसे मोनिका लेवेंस्की के बाद " विल क्लिंटन रिटर्न्स", "सरकोजी रिटर्न्स", "बर्लुस्कोनी रिटर्न्स", ऐसे में हमारे देश के नेता कैसे पीछे रहते इन्होने भी फिल्मे बनाई यही नहीं फिल्मो की झड़ी लगा दी,  "एन डी तिवारी रिटर्न्स""कलमाड़ी रिटर्न्स", "राजा रिटर्न्स", "कनिमोड़ी रिटर्न्स" के बाद अभी कल एक नयी राजनितिक फिल्म रिलीज़ हुई है " सिंघवी रिटर्न्स" आप लोगों को इनका पहला पार्ट तो याद होगा। महाशय जी कितनी कुशलता से वकील को जज बना रहे थे और यह पूरी प्रक्रिया विडियो भी उपलब्ध था। हालाँकि कुछ लोगों को इसको देखने का सौभाग्य नहीं मिला होगा, क्योंकी सरकार ने  इस पर रोक लगा दी थी । हम आशा करते हैं की इस अपने दूसरे  भाग में अभिषेक मनुसिघवी जी और भी उम्दा काम करेंगे, और अपनी कुशलता प्रमाणित कर, भारत के लोकतंत्र को और गौरवान्वित करेंगे। यही नही सोनिया जी को भी अपने कारिंदों पर काफी विश्वास है, उसमे  सिंघवी जी जरूर खरे उतरेंगे।  शिंदे जी वैसे भी कहते हैं की देश की जनता को कुछ याद नहीं रहता, ऐसे में फिल्मो के नए भाग लाना और जरूरी हो जाता है। ताकि जनता की याद और ताजा रहे। अब देखते हैं 2014 जनता को ये फिल्मे याद रहती हैं की नहीं।

अब मेरा जय हिन्द बोलने का मन भी नहीं हो रहा ! ( माफ़ करियेगा) 

बाकी आपलोग खुद ही समझदार हैं !!

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

कही अरविन्द बिगडैल बन्दर तो नहीं?




कोई कहता हैं ये खुलासों का दौर है, कोई कहता है अराजकता का दौर है, कोई कहता है अरविन्द केजरीवाल अपनी राजनीतिक रोटी सेक रहा है, कुछ स्वयंभू बुन्द्धिजीवी और संसद के ठेकेदार तो यहाँ तक कहते हैं की अरविन्द लोकतंत्र के लिए खतरा है।  पर मैं पूछता हूँ लोकतंत्र है कहाँ? ये तो सरकार और कॉर्पोरेट की युगलबंदी है जिसमे जनता बंदरिया की तरह नाच रही है, और इसी झपताल को ये लोग लोकतंत्र कहते हैं।  मुझे तो लगता है, की पिछले 65 सालों  में सरकार  और  कॉर्पोरेट की जिस तरह युगलबंदी हो रही थी, और जनता एक मजबूर बंदरिया की तरह उनकी ताल पर नाचने को विवश थी, आज इस गोल ( समूह)  में अरविन्द नाम का एक ऐसा बन्दर आगया है, जो उलट कर इन लोगों को चांटे लगाने का सहस किया है।  अब सरकार, विपक्ष और कॉर्पोरेट की ताल बिगडती लग रही है।  गौर तलब है की  पिछले 65 सालों में भारत का जिस तरह विकास हुआ है, और सामान्य जनता की जो हालत है, वो  कॉर्पोरेट और सरकार की युगलबंदी का ही परिणाम है। एक तरफ तो देश की राजधानी में मलयुक्त पानी पीने को मिलता है, बिजली नहीं है,  (आज जब देश की राजधानी की ये हालत है तो सुदूर क्षेत्रों की क्या होगी) और दूसरी तरफ प्राकृतिक संसाधनों की अन्धाधुन्ध लूट हो रही है। कॉर्पोरेट, और सरकार के लोग और अधिक  अमीर होते जा रहें है, और गरीब जनता को दो वक्त की रोटी तक नसीब नहीं है। सरकार वही करती है जिसमे बड़े- बड़े कॉर्पोरेट घरानों का स्वार्थ सिद्ध होता हो, जनता की चिंता किसी को नहीं होती है। बस चुनाव के समय 2-4 दाने दाल के डाल देते हैं और बंदरिया को नचाते रहते हैं। पर आज इस बिगडैल बन्दर की वजह से जो माहौल बना हुआ है, या बन रहा है, उसको और सघन करने की जरूरत है, तभी असली मदारी जनता होगी और, सरकार और कॉर्पोरेट उसकी बंदरिया, जो असल लोकतंत्र में होना चाहिए। 

जय हिन्द!! है भारत जन!!