गुरुवार, 2 अगस्त 2012

युद्द नाद



आग का दरिया जो दिल में है
उसे हिमालय की ओर तो जाने दो,
उनके  सिंघासन  बहुत उचाई पर हैं,
धारा उलटी तो आज बहाने दो,

न रोको आज उबल रहा है जो लावा,
धरा को फाड़ कर उसे बाहर तो आने दो,
सब्र का बान तोड़ दो आज,
बाढ़ आती है आज तो आजाने दो,

कब से इन्तजार है अपने हक का,
अपने हिस्से के दो टुकड़ों, खुशियों का,
साल जाते रहे, दशक भी गुजर गए,
आह को सीने में दबाकर यूँ ही बैठे रहे,

आज बहा दो आंसू की धार दिल से,
सैलाब आता है आज तो आजाने दो,
अपना हक तुम्हे है छीनना अपनोसे,
घबराओ नहीं बस डट कर संग्राम करो,

दिखा दो इन शोषकों को अपनी शक्ती,
अहिंसा की तलवार से ऐसा घाव करो,
अटल रहो अंगद के एक पांव की तरह,
इनके कुकर्मो का सारा हिसाब करो,

कटा दो सर अपना गर जरूरत हो,
भारत - जन पर जीवन कुर्बान करो,
भगत, गाँधी की रूह भी हँस पड़े,
अबकी ऐसा ही कोई युद्द नाद करो, 


जय हिंद! जय भारत-जन!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें