झुका गगन था, डरा पुरंदर.
सागर में थी, हलचल आई,
युद्ध नाद जब, हुआ प्रबल था,
वीर द्रोण ने की अंगवाई,
पांडव सेना बिचलित रन में,
ऐसी थी एक आंधी आई,
महाराज को बंदी करके,
युद्ध विजय की चाल बनाई,
चक्र व्यूह का भेद कठिन था,
पांडव सेना थी घबराई,
पार्थ नहीं था, दूर कहीं था,
और किसी पे काट नहीं था,
भीम धुरंधर,बली बड़े थे,
कई वीर थे, लड़े लड़ाई,
नहीं भेद, पाए जब रन को,
अभिमन्यु ने, आवाज लगाई,
मैं तोडूंगा, चक्र व्यूह को,
चाहे मुश्किल हो, ये लड़ाई,
जीतूँगा सारे वीरों को,
चाहे हो कितनी कठिनाई,
वीर तरुण था, चला अरुण सा,
युद्ध भेरी थी, विकट बजाई,
रन हुंकार भरी, जब उसने,
कौरव सेना थी, घबराई,
हुआ युद्ध था बड़ा भयंकर,
अभिमन्यु था रन में निष्चल,
सारे कौरव योद्धऔ की,
रन समाधि थी, आज बनानी,
एक सहस्त्र तीर थे चलते,
पल में सबको, घायल करते,
लहूलुहान थी कौरव सेना,
दुर्योधन की, शामत आई,
एक -एक योद्धा गिरा धरा पर,
द्रोण- पुत्र, या द्रोण स्वयं,
दुह्शासन , और शल्य गिरे थे,
कर्ण सरीखे वीर गिरे थे,
कौरव हार रहे थे, जब तब
कुटिल चल गुरु द्रोण चलाई,
एक वीर को घेर सभीने,
सबने मिलकर तीर चलाई,
टूटा रथ था, गिरा शस्त्र था,
फिर भी उसने, हार न मानी,
रथ का चक्र, उठा कर उसने,
किया युद्ध था हार न मानी,
कायर योद्धाओ ने मिल कर,
किया प्रहार, निहत्था था नर,
सिंह नाद करता जाता था,
धर्म युद्ध लड़े जाता था,
आठों योद्धाओं ने मिलकर,
अभिमन्यु पे, वार किया था,
हुआ था घायल, सिंह पुरुष था,
फिर भी उसने हार न मानी,
गिरा धरणी पर, जैसे हिमधर,
सबने मिल तलवार चलाई,
घायल था पर, उठा सम्हाल कर,
फिर भी युद्ध किया नर राई,
कर्ण आदि, योधाओं को उसने,
फिर भी थी, तब धुल चटाई,
थका वीर था, नवयुवक था,
पीछे से थी चोंट जो खाई,
निकले प्राण, गिरा धरती पर,
माँ को थी, आवाज लगाई,
लड़ा युद्ध था अंतिम क्षण तक,
प्राण दिए, पर लाज बचाई,
देश मान, और धर्म आन पर,
अभिमन्यु ने प्राण गवाई,
महा वीर था, अब शहीद था,
राज्य धर्म की लाज बचाई,
धरती माँ अब बिलख रही थी,
सुत शव पर वह रुदन कर रही,
कौरव सेना की कायरता,
की ये गाथा थी, सब ने गाई,
sudhir ji aap arvind ke sangharsh ke modern "Dinkar" ho.
जवाब देंहटाएंExcellent!!
Pankaj Ji! Mujhme itni kabiliyat nahi hai...utsahwardhan ke liye dhanyawad
हटाएंAbhar