शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

दि ग्रेट इंडियन पोलिटिकल ड्रामा !




कुरुक्षेत्र धर्मक्षेत्र  जंतरमंतर में पांडवों और कौरवों की सेनाये तैय्यार खड़ी थी।  अर्जुन केजरीवाल मंच पर चढ़ा अपनी सेना को सम्बोधित (लफबाजी) कर रहा था।  तभी सेनापति सिसौदिया का फ़ोन आया, भाई "बर्बरीक"  को बुलाया है, शंखनाद से पहले वीर की बलि देने का नाटक करना है। किसानो पर अपनी फसल जो काटनी है।   अर्जुन केजरीवाल,  कृष्ण आशुतोेष और भीनसेन खेतान से सलाह कर ग्रीन सिग्नल दे देता है।  उधर टेलीफ़ोन लाइन का क्रॉस कनेक्शन होने से कौरवों की सेना को भी ये बात पता चलती है, दुर्योधन उपाध्याय को भी अपनी राजनीति  सेकने का अच्छा मौका नजर आता है।  शकुनि गांधी को तो पुराना  बैर चुकाना था वो भी कौरवों और पांडवों दोनों को ख़त्म करदेना चाहता था।  उसकी दिल्ली जो छिन  गई थी।  

बर्बरीक जोकि कौरवों के शासन से बहुत परेशान है और उसकी खेती भी राजा इन्द्र और पवन देव ने मिलकर चौपट कर दी है।   हाथ में झाड़ू (कवच) लिए, सर में साफा (कुण्डल) बाधे प्रवेश करता है।  और पास के पेड़ में चढ़ जाता  है, सेनापति सिसोदिया की स्क्रिप्ट के मुताबिक़ वह फ़ासी लगाने का दिखावा करता है, एक हाथ में झाड़ू लिए कौरवों  को ललकारता है।  पांडव सेना में जोश भर जाता है, इस दृश्य को देख कर सभी उत्त्साहित है।  तभी कृष्ण के इशारे पर बर्बरीक को एक धक्का दिया जाता  है।  वो पेड़ से लटक जाता है, उसकी क़तर आँखे मदद के लिए चारो और देखती है।  पर हो हल्ले और जश्न में सब खो जाता है।   संजय भी आँखों देखा हाल सुनाने में मशगूल है अपनी टीआरपी क्यों कम करे।  कौरव के साथ मिलकर शकुनि की सेना पांडवों पर हमला बोल देती है।  बर्बरीक की आँखें निकल आती है। और जनता की आँखे अभी भी नहीं खुलती।  बर्बरीक के जेब से एक पत्र गिरता है जिसमे रैली में दिया जाने वाला भाषण लिखा है जिसे वो अपने घर वालो को टीवी पर देखने के लिए बोल आया था।  बर्बरीक के घरवालों को उसकी पेड़ पर लटकी हुई लाश दिखती है।  पोलिस जांच से ये नहीं पता चल पा रहा की वो बर्बरीक था या कर्ण।  

सभी महारथी मनोरंजन शाला के लिए प्रस्थान करते हैं।   

अर्जुन घटना के दो दिन बाद माफ़ी माग लेता है। 

कौरव और शकुनि ब्रदर्स खिचड़ी पकाने में व्यस्त !

इंटरवल के  बाद फिर से द्यूत क्रीड़ा आरम्भ होती है !

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