शनिवार, 3 जून 2017

क्या गौ-रक्षा भावनात्मक मुद्दा है ?

(कृपया अंततक पढ़े और अगर सहमत हों तो शेयर भी करें)


आज कल गौ-हत्या और गौ-रक्षा की बहस फिर तेज हो गई है। केरल में हुई सरेआम गाय के बछड़े की हत्या की घटना से बहुत सारे लोग आंदोलित हो रहे हैं। कुछलोग गाय को भारतीय संस्कृति से जोड़ कर उसके संरक्षण की बात करते हैं तो अन्य भोजन के अधिकार की बात कर गौ हत्या का समर्थन करते हैं। इन दोनों के बीच में एक आधुनिक पढ़ा-लिखा तपका है, जो गौ हत्या का समर्थन तो नहीं करता परन्तु इसे धार्मिक भावनाओ से जोड़ने का विरोध करता है। उसका तर्क है कि, इससे धार्मिक भावनाये भड़केंगी और अशांति फैलेगी।
इससे पहले कि हम इस बहस में पड़ें हमे ईमानदारी से देखना होगा कि क्या गाय अधिकतर भारतीयों की भावनाओ से जुडी हुई है या नहीं। मेरे अनुसार गौ - संरक्षण एक भावनात्मक मुद्दा है, जिसकी जड़ें पूरी तरह से बहुतायत भारतीय समाज में पैठी हुई हैं। इसको नकारना शुतुरमुर्ग की तरह आँखें बंद करने जैसी मूर्खता होगी। अब हम देखते हैं कैसे गाय भारतीय समाज के बड़े वर्ग की भावनाओ का प्रतिनिधित्व करती है। सनातन धर्म, जिसे आजकल हिन्दू धर्म भी बोलते हैं, में गाय को हजारों साल से सर्वश्रेठ, पूजनीय, उच्तम स्थान प्राप्त है। बच्चे के जन्म से लेकर मृत्यु तक हर एक पुनीत कार्य में गाय सम्मान पूर्वक सम्मलित है, चाहे वो गौ- दुग्ध हो, दही हो, मूत्र या फिर गोबर हो, इन सभी पदार्थों का उपयोग हर-एक धार्मिक अनुष्ठान में होता है। सनातन धर्म में गाय की श्रेष्ठता इस बात से साबित होती है कि, किसी भी अनुष्ठान के पूर्व यजमान को "पञ्च गव्य" पिला कर पवित्र किया जाता है, जिसके मुख्य घटक गौ मूत्र, गोबर, दुग्ध, दही, और घी होते हैं। सनातन धर्म में गौ-दान श्रेष्ठतम दान माना गया है। यह भी मान्यता है कि मृत्यु के समय गाय की-पूछ पकड़ने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। कई लोग सबेरे उठ कर गाय का चरण स्पर्श करते है। मैं इन सभी बातों के वैज्ञानिक तर्क पर बहस को नहीं लेजाना चाहता, वह एक अलग विषय है। परन्तु एक बात तो निश्चित है की जिस समाज में गाय को इतना सम्मान प्राप्त है वो भी हज़ारों वर्षों से, वहां ये बोलना कि गाय भावनात्मक मुद्दा नहीं है, मूर्खता होगी। जरा सोचिये ! आप जिसे इतना सम्मान करते हो, पूजते हो, अचानक उसकी बर्बरता पूर्ण हत्या की खबर मिले तो इंसान तो आंदोलित होगा ही। अतः हमे इस बात को स्वीकार करना होगा की गाय बहुतायत भारतीय के लिए भावनात्मक मुद्दा है, और फिर हमें इसका समाधान निकलना होगा।
अब रही भोजन के अधिकार वाली बात। भोजन का नैसर्गिक सिद्धांत ये कहता है, कि आप किसी से उसका भोजन नहीं छीन सकते। यहाँ हमे यह देखना होगा कि यह सिद्धांत यहाँ लागू होता है कि नहीं। क्या उनलोगों का गाय ही एक मात्र भोजन है या फिर और विकल्प उपलब्ध हैं। इसका उत्तर बहुत सरल है, ऐसे बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं, जिससे उन लोगों को भोजन मिल सकता है। गाय का मांस भूख का मुद्दा नहीं है बल्कि शौक का मुद्दा है। या उससे बढाकर गौ - हत्या जानबूझकर बहुसंख्यक समाज को भड़काने की कोशिश है।
गाय जिसे बहुसंखयक भारतीयों के जीवन सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त है, तबतक किसी का भोजन नहीं होसकती जबतक कि धरती पर भोजन का कोई अन्य विकल्प उपलब्ध है। और अगर भोजन के अन्य विकल्प पूरी तरह से समाप्त हो गए तो हमे यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हम उस परम्परा का प्रतिनिधितव करते हैं जिसमे एक राजा "शिवि" ने शरणागत कबूतर के प्राणो की रक्षा और बाज के भोजन के अधिकार के बीच न्याय करने के लिए अपने शरीर को भोजन के रूप में अर्पित कर दिया था।
अब हमे यह चुनना है कि क्या हम जानबूझ कर बहुसंख्यक समाज की भावनाओ को आहत कर अपने समाज को अराजकता की ओर ले जायेंगे या फिर खुद आगे आकर धार्मिक सद्भाव का परिचय देकर शांति का मार्ग प्रशस्त करंगे।
नोट - प्रिय मित्रों, कमेंट और शेयर करते समय #dontkillcow जरूर लिखें। इससे मुहीम को ज्यादा लोगों तक पहुँचाने में मदद मिलेगी।
आभार

डॉ. सुधीर कुमार शुक्ल " तेजस्वी"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें